बहुत सुन्दर शब्द जो एक मंदिर के दरवाजे़ पर लिखे थे- ‘ठोकरे खा कर भी ना संभले तो मुसाफ़िर का नसीब, वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा ही दिया!’
कोई आदमी चाहे लाखों चीजें जान ले। चाहे वह पूरे जगत को जान ले। लेकिन अगर वह स्वयं को नहीं जानता है तो वह अज्ञानी है।